अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा 50 साल बाद चांद पर एस्ट्रोनॉट्स को भेजने वाली है। आर्टेमिस-3 मिशन के तहत सितंबर 2026 में 2 एस्ट्रोनॉट्स चांद पर उतरेंगे। इस लूनर मिशन के लिए अमेरिकी राज्य एरिजोना की वोल्कैनो फील्ड में सिमुलेशन टेस्टिंग (किसी प्रक्रिया की नकल करना) चल रही है। यहां एस्ट्रोनॉट्स मूनवॉक की प्रैक्टिस कर रहे हैं। नासा के अंतरिक्ष यात्रियों केट रूबिन्स और आंड्रे डगलस ने आर्टेमिस-2 मिशन के लिए चुने गए एस्ट्रोनॉट्स की भूमिका निभाई। इस दौरान इन उन्होंने स्पेससूट जैसे दिखने वाले कपड़े पहने, हार्डवेयर की जांच की। इस दौरान उन्होंने चांद की सतह से सैंपल इकट्ठा करने की भी प्रैक्टिस की। 4 बार मूनवॉक और 6 बार तकनीक का परीक्षण होगा
एक हफ्ते तक चलने वाले इस सिमुलेशन टेस्टिंग के लिए 2 टीमें बनाई गई हैं। इनमें अंतरिक्ष यात्री, इंजीनियर, फील्ड एक्सपर्ट्स, फ्लाइट कंट्रोलर्स और वैज्ञानिक शामिल होंगे। यह मून मिशन के हर पहलू की टेस्टिंग करेंगे। इसके लिए 4 मूनवॉक और 6 एडवांस टेक्नोलॉजी टेस्टिंग की प्लानिंग की गई है। परीक्षण के दौरान नासा मून मिशन में डेटा कलेक्शन से लेकर कम्यूनिकेशन तक आने वाली दिक्कतों को पहचान कर उन्हें दूर करने की कोशिश करेगी। 1969 में अपोलो 11 मिशन के समय से ही एरिजोना के रेगिस्तान को लूनर मिशन के लिए ट्रेनिंग ग्राउंड के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। आर्टेमिस मिशन के तीन हिस्से?
अमेरिका 53 साल बाद एक बार फिर आर्टेमिस मिशन के जरिए इंसानों को चांद पर भेजने की तैयारी कर रहा है। इसे तीन भागों में बांटा गया है। आर्टेमिस-1, 2 और 3। आर्टेमिस-1 ने चंद्रमा का चक्कर लगाया, कुछ छोटे सैटेलाइट्स छोड़े और चांद के कई जरूरी फोटोज-वीडियोज उपलब्ध कराए। 2025 में आर्टेमिस-2 को लॉन्च किया जाएगा। इसमें कुछ एस्ट्रोनॉट्स भी जाएंगे, लेकिन वे चांद पर कदम नहीं रखेंगे। वे सिर्फ चांद के ऑर्बिट में घूमकर वापस आ जाएंगे। इस मिशन की अवधि ज्यादा होगी।
इसके बाद फाइनल मिशन आर्टेमिस-3 को रवाना किया जाएगा। इसमें जाने वाले एस्ट्रोनॉट्स चांद पर उतरेंगे। यह मिशन 2026 में लॉन्च किया जा सकता है। पहली बार महिलाएं भी ह्यूमन मून मिशन का हिस्सा बनेंगी। इसमें पर्सन ऑफ कलर (श्वेत से अलग नस्ल का व्यक्ति) भी क्रू मेम्बर होगा। एस्ट्रोनॉट्स चांद के साउथ पोल में मौजूद पानी और बर्फ पर रिसर्च करेंगे। आर्टेमिस मिशन की लागत 7,434 अरब रुपए
नासा ऑफिस ऑफ द इंस्पेक्टर जनरल के एक ऑडिट के अनुसार, 2012 से 2025 तक इस प्रोजेक्ट पर 93 बिलियन डॉलर, यानी 7,434 अरब रुपए का खर्चा आएगा। वहीं, हर फ्लाइट 4.1 बिलियन डॉलर, यानी 327 अरब रुपए की पड़ेगी। इस प्रोजेक्ट पर अब तक 37 बिलियन डॉलर, यानी 2,949 अरब रुपए खर्च किए जा चुके हैं। आर्टेमिस मिशन के दूसरे हिस्से आर्टेमिस-2 के लिए पिछले साल 4 सदस्यीय एस्ट्रोनॉट्स की टीम की घोषणा की गई थी। इसमें पहली बार एक अश्वेत अंतरिक्ष यात्री के साथ ही एक महिला को भी शामिल किया गया था। 50 साल पुराने अपोलो मिशन से अलग है आर्टेमिस
​​​​​​अपोलो मिशन की आखिरी और 17वीं फ्लाइट ने 1972 में उड़ान भरी थी। इस मिशन की परिकल्पना अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जे एफ केनेडी ने सोवियत संघ को मात देने के लिए की थी। उनका लक्ष्य अमेरिका को साइंस एंड टेक्नोलॉजी की फील्ड में दुनिया में पहले स्थान पर स्थापित करना था। हालांकि करीब 50 साल बाद माहौल अलग है। अब अमेरिका आर्टेमिस मिशन के जरिए रूस या चीन को मात नहीं देना चाहता। नासा का मकसद पृथ्वी के बाहर स्थित चीजों को अच्छी तरह एक्सप्लोर करना है। चांद पर जाकर वैज्ञानिक वहां की बर्फ और मिट्टी से ईंधन, खाना और इमारतें बनाने की कोशिश करना चाहते हैं।