भारत से 7,486 किलोमीटर दूर एक आईलैंड है, बोर्नियो। इस पर 3 देश बसे हैं, जिनमें में से एक है ब्रुनेई। ये एक इस्लामिक देश है, जहां सिर्फ 4 लाख लोग रहते हैं। पीएम मोदी इसी देश के दौरे पर हैं। यहां के राजा हसनल बोल्किया ने प्रधानमंत्री मोदी को न्योता दिया था। आज तक भारत का कोई प्रधानमंत्री ब्रुनेई के दौरे पर नहीं गया था। फिर एक तरफ साउथ चाइना सी और एक तरफ मलेशिया से घिरे इस देश में मोदी क्यों पहुंचे हैं। स्टोरी में जानिए शरिया का पालन करने वाला छोटा सा ब्रुनेई भारत के लिए अहम क्यों बन गया, टैक्स लिए बगैर ब्रुनेई कैसे लोगों को मुफ्त में शिक्षा और इलाज देता है… सबसे पहले जानिए ब्रुनेई के सुल्तान की लग्जीरियस लाइफ के बारे में
हसनल बोल्कैया इब्नी उमर अली सैफुद्दीन ब्रुनेई के 29वें सुल्तान हैं। 1984 में अंग्रेजों के जाने के बाद से वे ब्रुनेई के प्रधानमंत्री पद पर भी हैं। महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के बाद बोल्कैया सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले राजा हैं। उन्होंने 2017 में 50 साल राज करने पर गोल्डन जुबली मनाई थी। ब्रुनेई जैसे छोटे से देश में सुल्तान सबसे शक्तिशाली व्यक्ति होने के साथ-साथ सबसे अमीर राजाओं में भी हैं। 1980 तक वे दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति थे। फोर्ब्स के अनुसार, बोल्कैया की कुल संपत्ति 2008 में 1.4 लाख करोड़ रुपए थी। द टाइम्स यूके के अनुसार, बोल्कैया बाल कटवाने पर लगभग 16 लाख रुपए खर्च करते हैं। उनके हेयर स्टाइलिश महीने में दो बार प्राइवेट चार्टर्ड प्लेन से बुलाए जाते हैं। डेली मेल के अनुसार सुल्तान ने खुद के लिए बोइंग 747 विमान खरीदा, जिसकी कीमत करीब 40 करोड़ डॉलर यानी करीब 3,000 करोड़ रुपए है। दिलचस्प ये है कि उन्होंने इसमें अलग से 989 हजार करोड़ खर्च किया। यानी जितने का जहाज नहीं, उससे अधिक की एसेसरीज जोड़ी गईं, जिसमें सोने की वॉश बेसिन और आलीशान गोल्ड प्लेटेड खिड़कियां शामिल हैं। इस विमान के फ्लोर पर सोने के तारों वाली कालीन बिछाई गई है, जो हैंडमेड है। सुल्तान की विलासिता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने राजा बनने के बाद 50 अरब रुपए का महल बनवाया। इस महल को “इस्ताना नुरुल इमान” के नाम से जाना जाता है। इस महल में 800 कारों को रखने के लिए एक गैराज है। खास बात ये है कि यह महल की दीवारों पर सोने का पानी चढ़ा हुआ है। 20 लाख वर्ग फीट के क्षेत्र में फैला यह महल गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है। ब्रुनेई की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है तेल
ब्रुनेई में साल 1929 में सेरिया इलाके में तेल की खोज हुई थी। ब्रुनेई में तेल का पहला कुआं ब्रिटिश मलायन पेट्रोलियम कंपनी ने खोदा था, जिसे सेरिया-1 नाम दिया गया था। इस कुएं को अब रॉयल डच शेल के नाम से जाना जाता है। तेल की खोज ने ब्रुनेई को एक महत्वपूर्ण तेल उत्पादक देश के तौर पर पहचान दिलाई। तेल और प्राकृतिक गैस का उत्पादन ब्रुनेई की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। ब्रुनेई की कुल जीडीपी 1668.15 करोड़ अमेरिकी डॉलर है। देश की कुल जीडीपी का आधे से अधिक हिस्सा तेल और गैस के निर्यात से आता है। तेल के निर्यात ने ब्रुनेई को दुनिया के टॉप प्रति व्यक्ति आय वाले देशों में शामिल करा दिया है। देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होने से यहां शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं मुफ्त मिलती हैं। ब्रुनेई ने तेल से होने वाली कमाई को अलग-अलग सेक्टर्स में इंवेस्ट किया है। इससे उसकी अर्थव्यवस्था सिर्फ तेल पर निर्भर नहीं रह गई है। हालांकि अभी भी अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा तेल से ही आता है। अपनी स्थिर अर्थव्यवस्था की वजह से ब्रुनेई दक्षिण-पूर्व एशिया की क्षेत्रीय राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी है। टैक्स हेवन के तौर पर जाना जाता है ब्रुनेई
ब्रुनेई को इसकी टैक्स पॉलिसी, गोपनीय कानूनों की वजह से टैक्स हेवन कहा जाता है। इसकी वजह से व्यापारी निवेशक ब्रुनेई की तरफ आकर्षित होते हैं। ब्रुनेई में पर्सनल इनकम पर कोई टैक्स नहीं लगता है। यह नियम देश में रहने वाले नागरिकों और प्रवासियों दोनों पर लागू होता है। इसलिए ये उन लोगों के लिए खास हो जाता है जो इनकम टैक्स देने से बचना चाहते हैं। दूसरी तरफ यहां कॉर्पोरेट टैक्स भी सिर्फ 18.5% लगता है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार और शिपिंग में शामिल कंपनियों को कार्पोरेट टैक्स में छूट मिलती है या काफी कम टैक्स लगता है। इसकी वजह से विदेशी कंपनियों को ब्रुनेई में अपने बिजनेस लगाने में मदद मिलती है। देश में निवेश से होने वाले लाभ और विरासत पर भी कोई टैक्स नहीं लगता है। इसके अलावा ब्रुनेई ने बैंकिग की गोपनीयता को लेकर सख्त कानून बनाए हुए हैं। इससे खाता धारकों की गोपनीयता सुरक्षित रहती है। इससे विदेशी टैक्स एजेंसियों को ब्रुनेई में मौजूद खातों की जानकारी नहीं मिल पाती है। इसकी वजह से लोग यहां खातों में पैसा रखना सेफ मानते हैं। ब्रुनेई में करेंसी एक्सचेंज को मॉनीटर नहीं किया जाता है। इसकी वजह से पूंजी को देश से बाहर ले जाने और देश में लाने में आसानी होती है। प्रधानमंत्री मोदी के ब्रुनेई दौरे से जुड़े कुछ अहम सवाल और उनके जवाब सवाल 1: PM मोदी ब्रुनेई क्यों गए हैं?
जवाब: इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के विशेषज्ञ निरंजन चंद्रशेखर ओक से बात की। निरंजन नई दिल्ली स्थित मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस में रिसर्च एनालिस्ट हैं। इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं कि हाल ही में वियतनाम और मलेशिया के राष्ट्रपति ने भारत का दौरा किया था। भारत की राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु भी तिमोर-लेस्ते का दौरा करके लौटी हैं। अब प्रधानमंत्री मोदी ब्रुनेई दौरे पर पहुंचे हैं। इसके बाद वे सिंगापुर जाएंगे। यह दर्शाता है कि भारत दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र को कितना महत्व देता है। पिछले साल विदेश मंत्रालय के सेक्रेटरी ईस्ट सौरभ कुमार, एक डेलीगेशन लेकर ब्रुनेई गए थे। यहां उन्होंने विदेश मंत्रालयों की एक बैठक में भाग लिया था। तब दोनों देशों के बीच यह तय हुआ था कि भारत और ब्रुनेई अपने राजनयिक संबंधों के 40 साल पूरे होने पर ऐनीवर्सिरी मनाएंगे। इसी वजह से प्रधानमंत्री मोदी ब्रुनेई गए हैं। सवाल 2: भारत के लिहाज से ये विजिट क्यों खास है?
जवाब: निरंजन बताते हैं कि ब्रुनेई भारत के लिए डिफेंस, ट्रेड, एनर्जी और स्पेस टेक्नोलॉजी जैसी 4 अहम वजहों के लिहाज से खास है। इसके अलावा दोनों देशों के नागरिकों के बीच आपसी संबंध भी बेहद खास है। ब्रुनेई में रहने वाले भारतीय वहां बेहतर काम कर रहे हैं। इसके अलावा ब्रुनेई भारत के लिए स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण साझेदार है। भारत जब सेटेलाइट्स लॉन्च करता है, तो उनकी ट्रैकिंग के लिए भारत ने कई जगहों पर ग्राउंड स्टेशन बनाए हुए हैं। इसी के मद्देनजर भारत ने ब्रुनेई के साथ 2018 में एक MOU साइन किया था। इसे को-ऑपरेशन इन ऐलीमेंट्री ट्रैकिंग एंड कमांड स्टेशन फॉर सेटेलाइट नाम दिया गया था। वर्तमान में ये स्टेशन भारत के लिए बखूबी काम कर रहा है। इस लिहाज से ब्रुनेई की अहमियत बढ़ जाती है। इसके बदले में भारत ब्रुनेई के लोगों को स्पेस टेक्नोलॉजी से संबंधित ट्रैनिंग दे रहा है। एनर्जी के क्षेत्र में ब्रुनेई भारत का अहम साझेदार है। ब्रुनेई भारत को तेल निर्यात करता है। हालांकि हाल के दिनों में रूस से भारत के बढ़ते तेल आयात की वजह से ब्रुनेई के साथ तेल की खरीद में गिरावट आई है। लेकिन प्रधानमंत्री के इस दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच गैस को लेकर समझौता हो सकता है। दूसरी तरफ डिफेंस के क्षेत्र में भारत की नौसैनिक जहाज ब्रुनेई का दौरा करते रहते हैं। अब भारत इस साझेदारी को आगे बढ़ाते हुए ब्रुनेई के साथ एक ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप ऑन डिफेंस की स्थापना करने वाला है। ये ग्रुप भी इस दौरे के दौरान ही स्थापित होगा। सवाल 3: क्या ये दौरा चीन और साउथ चाइना सी विवाद के लिहाज से हो रहा है?
जवाब: निरंजन के मुताबिक भारत के लिहाज से देखे तो ब्रुनेई साउथ चाइना सी में बहुत खास रोल प्ले नहीं करता है। हालांकि चीन के साथ साउथ चाइना सी लेकर चल रहे विवाद वाले देशों में ब्रुनेई भी शामिल हैं। लेकिन इसे लेकर ब्रुनेई और चीन के बीच वैसा संघर्ष नहीं दिखता है, जैसा चीन का फिलीपींस के साथ दिखता है। ब्रुनेई भी चीन का विरोधा करता नहीं दिखता है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि ब्रुनेई ने चीन के दावे को स्वीकार कर लिया है। दूसरी तरफ भारत भी साउथ चाइना सी को लेकर अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक शांतिपूर्ण समाधान निकालने की बात करता है। संभव है कि इस विजिट के बाद दोनों देशों की तरफ से जारी होने वाले साझा बयान में भी भारत इस बात को दोहराए। ऐसे में यह कहना गलत होगा कि यह यात्रा चीन को ध्यान में रखकर की जा रही है। ये दौरा भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी का हिस्सा है। खासतौर पर भारत के आसियान देशों के साथ संबंधों के लिहाज से। सवाल 4: भारत के रक्षा निर्यात के लिहाज से कितना अहम है ये दौरा
जवाब: भारत अपने रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कोशिश कर रहा है। भारत की कोशिश है कि आत्मनिर्भर भारत के तहत भारत ज्यादा से ज्यादा डिफेंस मटेरियल का निर्यात करें। इस दौरे पर दोनों देशों के जिस ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप ऑफ डिफेंस को बनाने की बात चल रही है। उसका मकसद भी भारत के रक्षा निर्यात को बढ़ावा देना है। ब्रुनेई से जुड़ी ये जानकारी भी जान लीजिए ताजमहल की तर्ज पर बनी उमर अली मस्जिद
ब्रुनेई के बंदर सेरी बेगावान में बनी उमर अली सैफुद्दीन मस्जिद दक्षिण-पूर्व एशिया की सबसे खूबसूरत मस्जिदों में से एक है। इसे भारत के ताजमहल की तर्ज पर बनाया गया है। जो मुगल वास्तुकला से प्रेरित है। इसका निर्माण 1958 में करवाया गया था। इसे इटली एक डिजानर और ब्रिटिश इंजीनियरों ने बनाया है। इसका नाम ब्रुनेई के 28वे सुल्तान उमर अली सैफुद्दीन III के नाम पर रखा गया है। मस्जिद के निर्माण के लिए इटली संगमरमर मंगाया गया था। इसकी वजह से यह ताजमहल की तरह सफेद दिखती है। मस्जिद के टॉप पर एक सुनहरा गुंबद है, जो शहर के कई हिस्सों से दिखाई देता है। मस्जिद की मीनारें भी मुगल वास्तुकला से प्रेरित है। मस्जिद का इंटीरियर भी शानदार है। इंटीरियर में इंग्लैंड से लाई गई झूमर, सऊदी अरब से लाई गई कालीन और इटली से मंगाई गई कांच की खिड़किया लगाई गई हैं। हालांकि ताजमहल एक मकबरा है जिसे हुंमायु ने अपनी बेगम की याद में बनवाया था। जबकि ये मस्जिद एक पूजा स्थल है।