देशभक्ति से जुड़ी या स्पाई बेस्ड फिल्मों और शोज लिए कई मेकर्स की खास पसंद बने एक्टर आदिल हुसैन हाल ही में फिल्म ‘उलझ’ में नजर आए। इससे पहले वो ‘मुखबिर’ सीरीज और फिल्म ‘बेलबॉटम’ में भी नजर आ चुके हैं। उनसे ‘उलझ’ समेत कई मुद्दों पर खास चर्चा हुई… ‘उलझ’ के लिए कैसे बोर्ड पर आए। आपका किरदार इसमें क्या है। तैयारियां क्या रहीं?
किरदार को लेकर तैयारी तो जीवन भर ही रहती है। मैं ट्राइबल विलेज में भी रह चुका है, यहां दिल्ली में रहता हूं तो डिप्लोमैटिक सर्किल में, देश-विदेश के लोगों से मिलते रहते हैं। इस फिल्म में मुझे जो अच्छा लगा वह यह कि कैसे लोग अपने देश के लिए जान देने को भी तैयार रहते हैं। हमारे देश में भले ही वह हमारा दुश्मन हो पर उनके देश में वह हीरो है। इस किस्म की जटिल दुनिया में इस कहानी को पिरोया गया है। वह मुझे बहुत अच्छा लगा। इसमें मेरा जो किरदार है वह इंडिया से जो परमानेंट रिप्रेजेंटेटिव होते हैं यूएन में वह है। मेरे किरदार का नाम धनराज भाटिया है। जान्हवी के साथ काम के दौरान क्या उन्हें कोई गाइडेंस भी दी। श्रीदेवी को लेकर कोई चर्चा होती थी?
मेरा मानना है कि को-एक्टर के गाइडेंस देनी नहीं चाहिए। मैं हमेशा अपने जूनियर्स से यह कहता रहता हूं कि अगर गाइडेंस चाहिए तो डायरेक्टर से लें। डायरेक्टर का जो विजन है उसकी ही एग्जीक्यूशन होनी चाहिए। बाकी जान्हवी के साथ मेरी पहली मुलाकात 2011 में ही हुई थी। श्रीदेवी जी और मैं ‘इंग्लिश विंग्लिश’ की शूटिंग कर रहे थे। वहां सेट पर जान्हवी आया करती थीं। चुपचाप सेट पर कोने में बैठी रहती थीं। शूटिंग देखा करती थीं। तो ‘उलझ’ की शूटिंग के दौरान मैंने देखा कि जान्हवी भी श्रीदेवी जी की तरह ही फोकस और डेडिकेशन से काम करती हैं। आप कई स्पाई प्रोजेक्ट्स का हिस्सा रहे हैं। क्या ये जॉनर अधिक एक्साइट करता है?
बचपन से ही मैं बंगाली डिटेक्टिव सीरीज पढ़ता था। मैं जहां पैदा हुआ वह बंगाल के पास बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट है। वहां से जासूसी पर बेस्ड किताबें आती थीं। उसमें दीपक चटर्जी नाम का एक किरदार हुआ करता था तो मेरे ख्याल से दुनिया में सभी को डिटेक्टिव स्टोरीज पसंद हैं। बाकी ऐसा नहीं है कि मैं कभी स्पाई बनना चाहता था और फिल्मों में भी मुझे वैसे ही काम मिलने लगे। हां ये जरूर कहूंगा कि मेरा जो चेहरा है वह बहुत आम सा है, ऐसे आम चेहरे वाले लोग ही किसी अंजान जगह पर लोगों के बीच घुल-मिल जाते हैं। तो ये भी एक कारण है कि मेकर्स इस किस्म की फिल्मों में मुझे कास्ट करते हैं। कभी ‘जासूस विजय’ को लेकर मेकर्स से इसके दूसरे सीजन को लेकर चर्चा नहीं हुई? ‘मुखबिर’ के अगले सीजन को लेकर कोई तैयारी है क्या?
अब इस पर क्या ही कहूं। ऐसी कोई चर्चा तो नहीं हुई पर ‘दिल्ली क्राइम’ सीरीज में पुलिस कमिश्नर का रोल प्ले किया तो बस वह हो ही गया। ‘मुखबिर’ के अगले सीजन को लेकर जितना आपको पता है उतना ही मुझे भी पता है। मैंने सुना तो था कि कुछ प्लान हो रहा है पर अभी कुछ भी पुख्ता मेरे पास तक आया नहीं। इस पर बातचीत हो तो रही है, शायद लिखी भी जा रही है पर इसके अलावा और कुछ ओपन नहीं हुआ है। पहले और अब कहानियों के चयन को लेकर क्या माइंडसेट रहता आया है या चेंज भी होता है?
चेंज तो यही है कि जैसे-जैसे आप अनुभवी होते जाते हैं तो आप ज्यादा गहराई से किरदार आपके अंदर किरदार को गहराई से पढ़ने और समझने की क्षमता डेवलप होती जाती है। मैं कोशिश करता हूं ये समझने की कि फलां स्टोरी को करने में मेरा कितना समय जाएगा। कितने दिन अपने परिवार से दूर रहना होगा। जितना पैसा मुझे मिल रहा है, जितने दिन की डेट्स मुझे मेकर्स को देनी है उस लिहाज से सभी ठीक है कि नहीं। तो कला की दिशा में थोड़ी बहुत संतुष्टि भी चाहिए और थोड़ा बहुत पैसा भी मिल जाता है। ये दोनों चीजें एक-दूसरे पर हावी न हो। कला हावी हो तो बेहतर है पर पैसा नहीं हावी होना चाहिए। मैं तो यही मानकर चलता हूं। ओटीटी के दौर में किरदार की लेंथ या एक्ट में फ्रीडम को लेकर क्या संतुष्टि पाते हैं?
मैंने अभी तीन से चार सीरीज ही की हैं। उनमें भी लंबे किरदार नहीं किए। वजह यह होती है कि घर से बहुत लंबे समय तक गायब नहीं रह पाता। कई बार मेकर्स 70-70 दिन मांग लेते हैं। इतनी डेट्स दे पाना और मुंबई या कहीं और रहना भारी पड़ जाता है। हालांकि मुझे ओटोटी पर सीरीज देखना बहुत पसंद है। जैसे मेरे खास दोस्त राजेश तैलंग उनकी सीरीज मैंने देखी। ‘उलझ’ में भी हमने साथ में काम किया। तो इस किस्म के एक्टर्स के लिए ओटोटी पर स्पेस तो बना है। निगेटिव या पॉजिटिव रोल्स के जब ऑफर आते हैं तो सबसे पहले माइंड में क्या आता है?
मेरे लिए कहानी सबसे जरूरी है। अगर कोई कहानी समाज को किसी भी तरीके से दर्पण दिखाती है, उसे ऊपर ले जाती है तो उसमें निगेटिव रोल करने में मुझे कोई परेशानी नहीं है। लेकिन निगेटिव रोल या वाॅयलेंस को कोई ग्लोरीफाई करता है तो मैं वैसे किसी प्रोजेक्ट में हिस्सा नहीं लेता हूं।