‘पंचायत’ सीरीज के बिनोद अब ‘त्रिभुवन मिश्रा सीए टॉपर’ में ‘ढेंचा’ बनकर चर्चा में हैं। हाल ही में इस सीरीज को लेकर एक्टर अशोक पाठक ने दैनिक भास्कर से बातचीत की। दैनिक भास्कर के मुंबई ऑफिस में आए जब अशोक पाठक आए तो उनके चेहरे पर एक अलग ही चमक दिखी। एक्टर ने बताया कि पहले उनका लप्पू के किरदार के लिए ऑडिशन हुआ था। लेकिन डायरेक्टर ने उन्हें ढेंचा के किरदार के लिए चुन लिया और इस किरदार में उन्होंने अपना जी जान लगा दिया। आईए जानते हैं बातचीत के दौरान अशोक पाठक ने और क्या कहा ….. बिनोद की इमेज को तोड़ते हुए ‘ढेंचा का किरदार निभाना कितना चुनौतीपूर्ण था? पंचायत का जब दूसरा सीजन शूट कर रहा था। उसी समय ‘त्रिभुवन मिश्रा सीए टॉपर’ का किरदार ‘ढेंचा फाइनल हो गया था। जब यह किरदार मुझे मिला तो मुझे दुष्यंत कुमार की कविता ‘हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए’ याद आ गई। जब आप छोटे-छोटे किरदार करते हैं तो सोचते हैं कि कुछ बड़ा किरदार निभाने का मौका मिले। जब मुझे कुछ अच्छा करने की बेचैनी होती है तो ईश्वर की कृपा से कुछ अच्छा मिल जाता है। ‘ढेंचा’ के किरदार के साथ भी ऐसा ही हुआ। इस किरदार के लिए डायरेक्टर अमृत राज गुप्ता और पुनीत कृष्णा का बहुत शुक्रगुजार हूं। मैंने इसमें पहले लप्पू के किरदार के लिए ऑडिशन दिया था। अमृत और पुनीत भाई ने कास्टिंग डायरेक्टर से ढेंचा के ऑडिशन के लिए कहा। यह किरदार मिला और मैंने इसमें अपना जी जान लगा दिया। लेकिन इसमें मुझे कुछ चुनौतीपूर्ण नहीं लगा। राह चलते जो लोग ‘बिनोद’ कह कर बुलाते थे अब ‘ढेंचा’ कहकर बुलाते होंगें? अभी लोग ‘ढेंचा’ भाई कहकर बुलाने लगे हैं। सुनकर बहुत अच्छा लगता है। कोई किरदार जब अपना जगह बना लेता है तो लगता है कि मेहनत सफल हुई। बिनोद से भी लोगों की अलग तरह की मोहब्बत है। मेरे पेरेंट्स अभी मुंबई आए हुए हैं। उनके साथ कहीं जाता हूं। लोग मुझे पहचान कर मेरे बारे में बात करते हैं। यह सुनकर परेंट्स की आंखों में जो चमक मुझे दिखती है, उससे मुझे बहुत ऊर्जा मिलती है। मुझे लगता है कि दुनिया की सब चीजें मिल गईं। इस किरदार के लिए वैसे तो बहुत सारे कंप्लीमेंट्स मिले होगें, सबसे खूबसूरत कंप्लीमेंट्स क्या रहा है? मुझे बहुत सारे लोगों के मैसेज आ रहे हैं। उससे से कुछ लोगों ने बिनोद के किरदार को देखा था। उनके लिए ढेंचा के किरदार को देखना कमाल का अनुभव रहा है। लोग सीन के बारे में बातें करते हैं। सबसे खूबसूरत कंप्लीमेंट कुमार विश्वास जी का रहा है। सीरीज देखने के बाद उनका मैसेज आया था कि जीते रहिए अद्भुत अभिनेता। उन्होंने अपने घर पर बुलाया है। जब ऐसे-ऐसे कंप्लीमेंट्स मिलते हैं तो अपने इमोशन को कैसे रोक पाते हैं? अपने समाज, परिवार और दर्शकों के प्रति जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं। ऐसा लगता है कि यह मोहब्बत जिंदगी भर बनी रहे। अच्छी चीजों के लिए लोग तारीफ करें, ना कि बुरे चीजों के लिए दुत्कारें। मेरी हमेशा यही कोशिश रहेगी कि ईमानदारी के साथ अपना काम करते रहें। अब लगता है कि सफलता की पायदान पर धीरे-धीरे आपने चढ़ना शुरू कर दिया है? मुझे ऐसा लगता है कि अभी तक मुझे जो मिल रहा है। यह सब ब्याज है। मूलधन 2012 में ही मिल गया था। मैंने तो इस दिन की भी कल्पना नहीं की थी। बस ऐसे ही ईमानदारी से काम करते हुए आगे बढ़ते रहना है। मुझे अब कोई शिकवा- शिकायत भी नहीं रहा है। सफलता के क्या पैमाने हैं, इसके बारे में कभी नहीं सोचा कि क्या होगा। ‘ढेंचा’ का ऐसा किरदार हैं, जिसमें आपको बहुत कुछ करने का मौका मिला है, अब आगे किस तरह के किरदार करना चाहेंगे। कौन से प्रोजेक्ट्स आने वाले हैं? मेरी दो फिल्में आने वाली हैं। जिसमें से एक फिल्म ‘शू बॉक्स’ है। यह बहुत ही खूबसूरत फिल्म है। इसकी बहुत ही इंट्रेस्टिंग कहानी है। उसमें बहुत ही संजीदा किरदार है। उस फिल्म के लिए मैं दो-तीन हफ्ते इलाहाबाद में रहा। वहां की बोलचाल की भाषा को समझा। यह फिल्म कई फेस्टिवल में दिखाई जा चुकी है। इस फिल्म के रिलीज का इंतजार है। एक साउथ की फिल्म की रीमेक है। उसमें निगेटिव किरदार निभाया है। जिस तरह का किरदार आप निभाना चाहते हैं, वैसे किरदार अब आपके पास आने लगे हैं? मेरी भूख अच्छे किरदार निभाने की है। ‘त्रिभुवन मिश्रा सी ए टॉपर’ में ‘ढेंचा’ के किरदार के बाद अब चीजें बदली हैं। लोगों को लगने लगा है कि अब ऐसे भी किरदार निभा सकता हूं। मैं एक कलाकार होने के नाते यही सोचता हूं कि अलग-अलग किरदार आए और उसे जिया जाए। ऑडिशन के कैसे अनुभव रहे हैं, आउटडाइडर्स को क्या मैसेज देना चाहेंगे? अगर आप निगेटिव सोच लेकर आएंगे तो आपका निगेटिव ही अनुभव होगा। मुझे पता था कि यहां एक्टिंग करने आया हूं। मैंने उसी दिशा में काम करना शुरू किया। मैंने यह नहीं सोचा कि इंडस्ट्री में मेरा कोई गॉडफादर नहीं है तो कैसे काम मिलेगा। मैंने दिन भर 10 ऑडिशन देने के बजाय एक ही ऑडिशन पुख्ता तरीके से दिया। जहां ऑडिशन दिया, भले ही उस वक्त काम न मिला हो,लेकिन कास्टिंग डायरेक्ट को जरूर याद रहा। उन्होंने किसी और प्रोजेक्ट के लिए बुलाया। रिलेशन आपके काम की वजह से ही बनेंगे। अगर आपके अंदर टैलेंट है तो मौके जरूर मिलते हैं। ऑडिशन के दौरान सबसे सुखद और दुखद अनुभव क्या रहे? मुझे ऑडिशन देने में सबसे ज्यादा मजा आता है। कोविड के बाद तो खुद ही ऑडिशन भेजना पड़ता है। लेकिन जब शुरू-शुरू में आया था तो बोला जाता था कि रोल के लिए फिट नहीं हो। यह सुनकर जरूर बुरा लगता है। लेकिन ऑडिशन का भी एक प्रोसेस होता है। इसमें बुरा लगने वाली बात नहीं होनी चाहिए। आपने कई सीनियर एक्टर्स के साथ काम किया है। चाहे रघवीर यादव, पंकज त्रिपाठी या फिर नवाजुद्दीन सिद्दकी हो। किसके साथ काम करने का सबसे बढ़िया अनुभव रहा है? मैं देखता था कि मेरे सीनियर एक्टर्स कैसे परफार्म कर रहे हैं। जिस तरह से वे सहज काम करते हैं। वह देखकर खुद का आधा काम हो जाता है। मैंने अमिताभ बच्चन साहब के साथ भी एक फिल्म ‘102 नॉट आउट’ की है। आज भी वो लाइनें याद करके एकदम वैसा ही बोलते हैं। उनके साथ मेरा एक ही सीन था। रिहर्सल के दौरान बच्चन साहब बोले कि अपने तरफ से कुछ इंप्रोवाइजेशन करना चाहोगे। बच्चन साहब के साथ काम करके नर्वस थे? मैं नर्वस नहीं था, बल्कि उस हर एक पल को इन्जॉय कर रहा था। मेरे पिता जी बच्चन साहब के बहुत बड़े फैन हैं। आज भी बच्चन साहब की कोई भी फिल्म आ जाए तो 20 बार देखते हैं। सीन खत्म होने के बाद मैंने यह बात बच्चन साहब को बताई, तो बोले कि पिता जी से बात कराइए। पिताजी उस समय हरियाणा में जिंदल कंपनी में काम करते थे। उनका फोन गेट पर रखवा लिया जाता था। मुझे उम्मीद नहीं थी कि बच्चन साहब ऐसा बोल देंगे। आज भी पापा को बताता हूं तो वो सोचते हैं कि काश उस दिन छुट्टी रही होती।