‘भारत और रूस का रिश्ता सिर्फ पॉलिटिक्स या डिप्लोमेसी या फिर इकोनॉमी का नहीं है, बल्कि ये कुछ ज्यादा ही गहरी चीज है।’ दिसंबर 2024 में एस जयशंकर रूस के दौरे पर पहुंचे थे, उन्होंने ये बयान तब दिया था। अब ऐसे वक्त में जब पश्चिमी देशों ने रूस को अलग-थलग कर दिया है, पीएम नरेंद्र मोदी रूस जा रहे हैं। भारत और रूस की ये दोस्ती 77 साल पहले तब शुरू हुई थी, जब आजाद भारत में पहले रूसी राजदूत ने पैर रखा था। फिर ऐसा वक्त भी आया जब भारत को बचाने के लिए रूस ने अमेरिका और ब्रिटेन के खिलाफ अपने जंगी जहाज भेज दिए थे। 21 तस्वीरों में दोनों देशों की दोस्ती की जर्नी… तस्वीर- 21 दिसंबर 1947 पहली बार भारत ने विजय लक्ष्मी पंडित को रूस (तब सोवियत संघ) का राजदूत बनाया। वहीं रूस ने किरिल नोविकोव को भारत राजदूत बनाकर दिल्ली भेजा। ये तस्वीर उसी वक्त की है, जब वे दिल्ली एयरपोर्ट पर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ उतरे थे। यही वो दिन था, जब भारत-रूस के रिश्तों की अटूट नींव रखी गई थी। तस्वीर- 7 नवंबर 1951 इस साल दुनिया के मजदूरों की सबसे बड़ी रूसी क्रांति के 34 साल पूरे हो रहे थे। रूस में इस मौके पर भव्य आयोजन हुआ था। भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को इसमें शामिल होने का निमंत्रण मिला। न्योता लेकर खुद रूसी एम्बेसडर किरिल नोविकोव भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के पास पहुंचे थे। ये तस्वीर उसी वक्त की है। तस्वीर- 7 जून 1955 पंडित जवाहर लाल नेहरू बतौर PM पहली बार 1955 में सोवियत संघ के दौरे पर गए। इस दौरान मॉस्को में हवाई अड्डे पर उनका स्वागत उस वक्त के कम्युनिस्ट पार्टी के सचिव और रूस के सबसे बड़े नेता निकिता ख्रुश्चेव ने किया था। हालांकि ये जवाहरलाल नेहरू का पहला सोवियत दौरा नहीं था। वे 1927 में भी अपने पिता के साथ अक्टूबर क्रांति की 10वीं वर्षगांठ में हिस्सा लेने मॉस्को गए थे। तस्वीर- 28 नवंबर 1955 भारत और रूस की दोस्ती गहराती जा रही थी। नेहरू की यात्रा के 5 महीने बाद पहली बार USSR मंत्रिपरिषद के अध्यक्ष निकोलाई बुल्गानिन और निकिता ख्रुश्चेव (CPSU सेंट्रल कमेटी के मुख्य सचिव) खुद भारत आ गए। नई दिल्ली में बने हैदराबाद हाउस में दोनों नेताओं ने कई दिन बिताए थे। दोनों 3 हफ्ते की लंबी यात्रा पर भारत आए थे। ये दौरा इसलिए भी खास था कि शीतयुद्ध के शुरू होने के बाद पहली बार रूसी नेता ऐसे देश गए थे जो समाजवादी नहीं था। ये तस्वीर उसी दौरे की है। तस्वीर- 10 दिसंबर 1955 बुल्गानिन और ख्रुश्चेव कश्मीर घूमने भी गए। वहां इनके स्वागत में कश्मीरियों ने जुलूस निकाल दिया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उन्हें देखने 20 लाख से ज्यादा लोग जमा हो गए। जब वे श्रीनगर की सड़कों पर निकले तो सड़कें जाम हो गईं। कश्मीर के इस दौरे का ये अंजाम हुआ कि जब 7 साल बाद 22 जून 1962 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में कश्मीर का मुद्दा उठा तो सोवियत रूस ने अपने 100वें वीटो से भारत का समर्थन किया। तस्वीर- 10 दिसंबर 1955 भारत के स्वर्ग (कश्मीर) के दौरे पर ख्रुश्चेव और बुल्गानिन का स्वागत जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद ने किया था। सोवियत संघ के बड़े नेताओं के कश्मीर जाने की चर्चा पूरी दुनिया में हुई। इस दौरान ख्रुश्चेव ने कश्मीर पर बड़ा बयान देते हुए इसे भारत का हिस्सा बताया। तस्वीर में बख्शी और ख्रुश्चेव एक-दूसरे को गुस्ताबा (कश्मीरी पकवान) खिला रहे हैं। तस्वीर- दिसंबर 1955 ये तस्वीर ख्रुश्चेव और बुल्गानिन के कश्मीर में हो रहे रोड शो की है। इस रोड शो के दौरान उनके साथ प्रधानमंत्री बख्शी गुलाम मोहम्मद, सदर-ए-रियासत कर्ण सिंह भी थे। उनके स्वागत में तब हजारों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। तस्वीर- दिसंबर 1955 अपनी भारत यात्रा के दौरान ख्रुश्चेव और बुल्गानिन रूस लौटने से पहले कोयंबटूर के पास वडामदुरई गांव गए। यहीं पर बुल्गानिन एक खेत में नारियल का रस पीने के लिए रुक गए। आज भी लोग इस जगह को ‘बुल्गानिन थोट्टम’ कहते हैं। ये तस्वीर उसी वक्त की है। तस्वीर- 27 मार्च 1960 प्रधानमंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरू दूसरी बार सोवियत संघ गए। इस दौरान सोवियत सरकार ने उन्हें गाय गिफ्ट की। जब सोवियत राजदूत इवान बेनेडिक्टोव और उनकी पत्नी ने गाय की रस्सी नेहरू को थमाई तो वो तुरंत उसे चारा खिलाने लगे। यह दोनों देशों के लिए एक बेहद यादगार वक्त था। तस्वीर- नवंबर 1961 12 अप्रैल 1961 को सोवियत अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन पहली बार अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाले व्यक्ति बन गए। अपनी कामयाबी के बाद इसी साल वो भारत आए थे। तस्वीर उसी वक्त की है, जब नेहरू ने गागरिन के साथ मुंबई की सड़कों पर रैली निकाली थी। बाद में रूस ने आसमान और अंतरिक्ष फतह करने में भारत का साथ दिया था। तस्वीर- साल 1963 16 जून 1963 को पहली बार दुनिया में किसी महिला ने अंतरिक्ष में उड़ान भरी थी। अंतरिक्ष यात्री वेलेंटीन टेरेशकोवा उसी साल भारत दौरे पर आई थीं। दिल्ली के एक कार्यक्रम में उस समय के पीएम नेहरू के साथ सोवियत राजदूत इवान बेनेडिक्टोव और वेलेंटीन ने हिस्सा लिया था। ये उसी वक्त की तस्वीर है। तस्वीर- 1966 भारत की आजादी के 19 साल बीत चुके थे। अब तक देश में कोई बड़ा स्टील प्लांट नहीं लगा था। भारत सरकार के पास प्लांट लगाने की तकनीक नहीं थी। इस काम के लिए भारत ने दोस्त रूस की ओर देखा, इसके बाद रूस ने तुरंत खास मदद भेजने का ऐलान कर दिया। नतीजा- 1966 में तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रूस की मदद से बोकारो स्टील प्लांट की आधारशिला रखी। तस्वीर- 1971 तस्वीर में इंदिरा गांधी रूस के कद्दावर नेता और विदेश मंत्री आंद्रेई ग्रॉमिको से हाथ मिला रही हैं। इसी वक्त भारत-रूस के बीच मित्रता संधि हुई थी। इंदिरा ने नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति के खिलाफ जाकर ये संधि की थी। इसी के बाद रूस ने भारत का साथ देने के लिए अमेरिका से लोहा लिया था। कैसे ये अगली तस्वीर में जानिए… तस्वीर- 1971 बांग्लादेश को लेकर भारत और पाक के बीच जंग छिड़ गई थी। अमेरिकी सहित पश्चिमी देश पाकिस्तान का समर्थन कर रहे थे। अमेरिका ने इस युद्ध में भारत के खिलाफ अपने जंगी जहाजों का सातवां बेड़ा भेज दिया। इसके जवाब में रूस ने परमाणु मिसाइल से लैस जंगी जहाज से समुद्री रास्ता रोककर अमेरिका, ब्रिटेन समेत दूसरे देशों के पोत को भारत पर हमला करने से रोक दिया। तस्वीर- 1984 रूस ने भारत का सिर्फ जंग के मैदान में ही नहीं बल्कि आसमान और अंतरिक्ष को फतह करने में भी साथ दिया। 1975 में पहले उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण में और फिर 1984 में राकेश शर्मा की अंतरिक्ष यात्रा में भी रूस ने काफी मदद की थी। इस तस्वीर में भारत और सोवियत संघ (रूस) के अंतरिक्ष चालक दल के सदस्य साथ दिख रहे हैं। तस्वीर- 1988 बांग्लादेश की जंग के बाद भारत और रूस की दोस्ती दुनिया भर के लिए मिसाल बन गई थी। दुनिया के दूसरे देशों ने इस दोस्ती पर नजर लगानी शुरू कर दी। इसके बाद जब सोवियत राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव आधिकारिक दौरे पर भारत आए तो प्रधानमंत्री राजीव गांधी उनका स्वागत करने सीधे एयरपोर्ट पहुंच गए थे। यह तस्वीर नवंबर 1988 नई दिल्ली की है। तस्वीर- 1993 रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन भारत आए थे। इस दौरान राष्ट्रपति भवन में एक स्वागत समारोह में भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन का स्वागत किया। यह तस्वीर उसी समय की है। तस्वीर- 2000 रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत की आधिकारिक यात्रा पर आए। इस दौरान राष्ट्रपति भवन में उनका राजकीय स्वागत किया गया था। तस्वीर- नवंबर 2001 अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार केंद्र में थी। पुतिन एक बार फिर से भारत के दौरे पर थे। तब एक मीटिंग में वाजपेयी और पुतिन एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं। इस मीटिंग के दौरान गुजरात के तत्कालीन CM नरेंद्र मोदी पीछे खड़े हैं। तब पुतिन को भी अंदाजा नहीं रहा होगा कि पीछे खड़े मोदी भविष्य में भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले हैं। तस्वीर- 2007 सरकार भले बदल गई हो पर भारत को लेकर पुतिन के प्यार में कोई कमी नहीं आई। एक बार फिर पुतिन भारत आए और हिंदुस्तान को परमाणु ऊर्जा के लिए तकनीक और संसाधन देने का वादा किया। इस तस्वीर में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह दिख रहे हैं। तस्वीर- 2014 नवंबर 2001 में पुतिन भारत आए थे तो मोदी अटल बिहारी की कुर्सी के पीछे खड़े थे। 13 साल बाद पुतिन भारत आए तो वही नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन गए थे। यह तस्वीर नई दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में 11 दिसंबर 2014 को ली गई। तस्वीर में दोनों नेता हाथ मिलाते नजर आ रहे हैं।