19 नवंबर 1977 की बात है। इजराइल के डेविड बेंगुरिअन एयरपोर्ट पर एक विदेशी मेहमान का इंतजार हो रहा था। हजारों इजराइली इस मेहमान की झलक पाने के लिए सड़कों के किनारे जमा थे। जो सड़कों पर नहीं थे वो घरों में अपने टीवी के सामने जमकर बैठे थे। ये मेहमान कोई और नहीं बल्कि मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात थे। जो 4 चार जंग लड़ने के बाद इजराइल से रिश्ते सुधारने वहां आए थे। इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा था जब कोई अरब नेता इजराइल पहुंच रहा था। अनवर सादात के इस दौरे ने 1978 में आज ही के दिन हुए इजराइल-मिस्र शांति समझौते की नींव पक्की कर दी थी। अमेरिका के कराए इसी समझौते से 2 दुश्मन देश दोस्त बने। इसी समझौते ने दोनों देशों के नेताओं को नोबेल पीस प्राइज दिलाया और फिर अनवर सादात की मौत की वजह बना। एक राष्ट्रपति और 34 गोलियां
6 अक्टूबर 1981, ये दिन खास था। मिस्र में हर साल छह अक्टूबर को विजय दिवस मनाया जाता है। राष्ट्रपति अनवर सादात सुबह साढ़े आठ बजे सो कर उठे। मिस्र के पत्रकार मोहम्मद हीकाल अपनी किताब ‘ऑटम ऑफ फ्यूरी: द असैसिनेशन ऑफ सादात’ में लिखते हैं, इस दिन के लिए अनवर ने खास लंदन से सैनिक वर्दी सिलाई थी। उनकी पत्नी जिहान ने वर्दी में बुलेटप्रूफ जैकेट नहीं होने पर चिंता जताई तो अनवर ने उनकी बात को ये कहकर टाल दिया था कि यूनिफॉर्म की शक्ल बिगड़ जाएगी। “इसके बाद सादात अपनी फील्डमार्शल की बेंत उठाना भी भूल गए। कुछ देर बाद सादात अपने देश की सेना का शक्ति प्रदर्शन देखने के लिए काहिरा के परेड ग्राउंड में मौजूद थे। उनके बगल में उप राष्ट्रपति होस्नी मुबारक बैठे थे। मिस्र की वायुसेना आसमान में कलाबाजी दिखा रही थीं। सादात गर्व से उसे देख रहे थे। इसके बाद तोपखाने की परेड की बारी आई। सेना का एक ट्रक सादात को सलामी देने के लिए मंच के पास पहुंचा। तभी अचानक किसी ने सादात के मंच की तरफ ग्रेनेड फेंका और ताबड़तोड़ गोलीबारी शुरू कर दी। पहली गोली सीधा राष्ट्रपति की गर्दन पर लगी। सब कुछ इतना तेजी से हुआ कि उनके गार्ड कुछ समझ नहीं पाए। राष्ट्रपति सादात पर हमले की अगुआई करने वाले कोई और नहीं बल्कि मिस्र की सेना के लेफ्टिनेंट खालेद इस्लामबोली ही थे। सादात पर 34 गोलियां चलाई गईं, जिससे उनकी मौत हो गई। उस अमेरिकी समझौते की कहानी जिससे अरब देशों के लिए दुश्मन बने सादात
1977 में जिमी कार्टर अमेरिका के राष्ट्रपति बने। पहले दिन से ही वो मिडिल ईस्ट के मामलों में दिलचस्पी दिखाने लगे थे। अमेरिकी प्रोफेसर क्रेग डेगल अपनी किताब कैंप डेविड एंड रीमेकिंग ऑफ द मिडिल ईस्ट में लिखते हैं कि कार्टर अरब वर्ल्ड में अमेरिका की साख को मजबूत करना चाहते थे। ये वजह भी थी कि उन्होंने 1948 से 1977 तक 4 बार जंग लड़ चुके मिस्र और इजराइल के बीच सुलह कराने की ठान ली। महीनों की चर्चाओं और बैठकों के बाद 19 नवंबर को सादात इजराइल गए। उन्होंने इजराइली संसद नीसेट में भाषण दिया और कहा, ‘आप अरब वर्ल्ड में हमारे साथ रहना चाहते हैं, मैं आपसे कहता हूं कि हम आपका स्वागत करते हैं। आप पूरी सेफ्टी और सिक्योरिटी से हमारे साथ रहिए।’ सादात ने ये बात कहकर इजराइल को देश के तौर पर मान्यता दे दी। अगले ही साल 26 मार्च 1978 को अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर की मौजूदगी में मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल सादत और इजरायल के प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन ने इजराइल और मिस्र के शांति समझौते पर दस्तखत कर दिए।
इस समझौते के बदले इजरायल ने मिस्र का सिनाई इलाका खाली कर दिया था, जिस पर उसने 1967 के युद्ध में कब्जा किया था। 1978 में इस समझौते के लिए सादात और बेगिन को नोबेल पीस प्राइज भी मिला था। इजराइल से समझौता कर सादात ने अपने ही डेथ वारंट पर साइन किए थे
अनवर सादात की पत्नी जेहान सादात का मानना था कि इजराइल से शांति समझौता कर सादात ने खुद अपने डेथ वारंट पर साइन किए थे। BBC के मुताबिक जेहान सादान ने बताया था, ‘अनवर सादात को कई धमकियां भी मिली थीं कि उन्हें मारा डाला जाएगा। अनवर और मुझे इसका पता था। लेकिन मैं इस बारे में उनसे बात नहीं करती थी ताकि उनका मनोबल न टूटे।’ BBC को दिए इंटरव्यू में प्रोफेसर आफताब कमाल पाशा बताते हैं कि सादात की हत्या में मुस्लिम ब्रदरहुड का हाथ बताया जाता है। ये संगठन फिलिस्तीन की जंग के दौरान लोकप्रियता मिली थी।
साल 1955 से 1970 में जब जमाल अब्देल नासिर सत्ता में थे तो उन्होंने मुस्लिम ब्रदरहुड के लोगों को या तो जेल में डाल दिया गया था या मार दिया गया था। जब सादात सत्ता में आए तो उन्होंने इस संगठन के कई लोगों को रिहा कर दिया। मुस्लिम ब्रदरहुड इजराइल और अमेरिका का कट्टर विरोधी था। इजराइल को मान्यता देकर सादात ने इन्हें नाराज किया था। इसके चलते 6 अक्तूबर, 1981 को उनकी हत्या कर दी।