डी-डे पर फ्रांस में एकजुट दुनिया के 5 बड़े नेता:क्यों अहम है यह दिन, जिस पर बाइडेन बोले-यूक्रेन जंग सेकेंड

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5 जून 1944 की रात। फ्रांस के नॉरमंडी शहर में समंदर की लहरें शांत थीं और पूर्णिमा का चांद पूरे शबाब पर था। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के 1,60,000 से अधिक सैनिक नॉरमंडी में मौजूद नाजी सैनिकों पर हमला करने की तैयारी कर रहे थे। लेकिन अचानक एक तूफान आ गया। सारी तैयारी धरी की धरी रह गई। मजबूरन अमेरिकी सेना के सुप्रीम कमांडर ड्वाइट आइजनहावर को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। अमेरिकी सैनिकों ने दिन भर का इंतजार किया। आधी रात के बाद हजारों सैनिक पैराशूट से नॉरमंडी के बीच पर लैंड पर करते हैं। सुबह होने तक नाजी सैनिकों को इस बात की भनक तक नहीं हुई कि दुश्मन सेना इतनी करीब पहुंच चुकी है। जैसे ही उजाला हुआ अमेरिकी सैनिकों ने सुबह के साढ़े 6 बजे नाजियों पर हमला शुरू कर दिया। इसमें उनका साथ देने ब्रिटेन और फ्रांस के सैनिक आ गए। जमीन-आसमान और समंदर तीनों तरफ से एकसाथ हमले की उम्मीद नाजी सैनिकों को नहीं थी। वे संभल नहीं पाए। इसमें जर्मनी के करीब 8,000 सैनिकों की जान गई। वहीं, मित्र देशों(अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन) के करीब 4,500 सैनिक मारे गए। ये सब अचानक नहीं हुआ था। इसकी तैयारी करीब एक सालों से चल रही थी। जर्मनी को भनक थी कि मित्र देश कुछ बड़ा करने वाले हैं मगर अमेरिका ने जानबूझकर उन्हें गलत इनपुट देकर उलझाए रखा। यूं तो नॉरमंडी की लड़ाई का कोडनेम ऑपरेशन ओवरलॉर्ड था, लेकिन यह जंग इतनी निर्णायक और ऐतिहासिक बन गई कि इसके लिए आमतौर पर डी-डे ही प्रचलित हो गया। डी-डे को ‘हिटलर के शासन के अंत की शुरुआत’ के दिन के तौर पर याद रखा जाता है। डी-डे की शुरुआत के बाद ही यूरोप को मुक्त कराया जा सका और जर्मनी में नाजी शासन को खत्म किया जा सका। आज ठीक 80 साल बाद इसी नॉरमंडी बीच पर अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, यूक्रेन, कनाडा के नेता इकट्ठा हुए हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन बाइडेन, ब्रिटेन के किंग चार्ल्स और पीएम ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की पहुंचे हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, इस दौरान वे दुनिया को ये मैसेज देने की कोशिश करेंगे कि यूक्रेन के खिलाफ रूस की जंग दूसरे विश्वयुद्ध का ही विस्तार है। अमेरिका और उसके सहयोगी देश इसके खिलाफ एकजुट हैं। इस मौके पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने एक भावुक भाषण दिया। उन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध और अभी रूस के यूक्रेन पर हमले की घटना की कड़ी जोड़ने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि बुरी ताकतें जिनसे मित्र देशों की सेनाएं लड़ी थीं अभी खत्म नहीं हुई हैं। बाइडेन कहा कि तानाशाही और आजादी के बीच संघर्ष अभी थमा नहीं है। यूक्रेन अभी ताजा उदाहरण है कि कैसे एक तानाशाह (पुतिन) ने इस देश पर हमला किया है। मगर यूक्रेन पीछे नहीं हटेगा। हम उसका साथ नहीं छोड़ेंगे। इससे पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी थी कि मॉस्को पश्चिमी देशों पर हमला करने के उद्देश्य से देशों को हथियार दे सकता है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक पुतिन ने यह बयान यूक्रेन को पश्चिमी देशों द्वारा लंबी दूरी के हथियार दिए जाने की आलोचना करते हुए दिया। दरअसल अमेरिका सहित कई देशों ने यूक्रेन को रूस के भीतर हमला करने की हरी झंडी दे दी है। पुतिन ने इसे लेकर कहा कि इस तरह के एक्शन से बहुत गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। हालांकि पुतिन ने ये साफ नहीं किया कि रूस किन देशों को हथियार आपूर्ति कर सकता है।

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