विक्रांत मैसी की फिल्म ‘ब्लैक आउट’ ओटीटी प्लेटफॉर्म जियो सिनेमा पर रिलीज हो चुकी है। ये एक डार्क सस्पेंस थ्रिलर कॉमेडी है। इसमें सुनील ग्रोवर, विक्रांत मैसी और मौनी रॉय भी हैं। इसके निर्माण में नीरज कोठारी का 11:11 प्रोडक्शन भी शामिल है। निर्देशक देवांग भावसार है। उनसे फिल्म को लेकर हुई खास बातचीत… ‘ब्लैक आउट’ का आइडिया कहां से कैसे और कब आया?
मैं हमेशा से यह विचार करता था कि कोई एक रात पर बेस्ड कॉमेडी कहानी बनाऊंगा, जिसमें खूब सारा कन्फ्यूजन हो। इसके लिए प्रेरणा कहां से ली इसकी बात करूं तो हां जब कभी लाइट चली जाए तो फिर दिमाग चलता है कि ऐसी परिस्थिति में क्या-क्या नहीं हो सकता है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि एक दिन लाइट गई और इस कहानी को लेकर मेरे दिमाग की बत्ती जल गई। मैं हमेशा ही ऑडियंस के नजरिए से कोई भी कहानी लिखता हूं या बनाता हूं। कोशिश करता हूं कि इस कहानी में ऐसा कुछ करूंगा कि दर्शकों को मजा आ जाए। क्या फिल्म के लिए विक्रांत ही पहली चॉइस थे?
हां, विक्रांत ही पहली चॉइस थे। नीरज कोठारी और विक्रांत पहले भी साथ काम कर चुके थे। इसके लिए लीड एक्टर की तलाश करते हुए मैं और नीरज दोनों को लगा कि इससे बेहतर और कोई कास्टिंग नहीं हो सकती है। दर्शक जब इस कैरेक्टर को देखेंगे तो पाएंगे कि कुछ चीजें हैं जो शायद विक्रांत ही कर सकते थे। वह इस किरदार के साथ फिट बैठ रहे थे। यह वैसे ही है जैसे ‘वेलकम’ में अक्षय का किरदार कई तरफ से फंस जाता है। शूटिंग के दौरान क्या मुश्किलें आईं?
सबसे बड़ा चैलेंज तो इसे रात में शूट करना ही रहा। हालांकि, कुछ दिन के भी शूट हुए पर अधिकतर रात के सीन ही हैं। रात को शूट करते वक्त सिर्फ एक्टर ही नहीं बल्कि पूरी टीम के लिए चैलेंजिंग रहा क्योंकि रात के वक्त आप काम कर रहे हैं और दिन में सो रहे हैं ऐसे में बॉडी साइकिल चेंज हो जाता है। फिर हम पुणे की सड़कों पर शूट कर रहे थे। ऐसे में रोड ब्लॉक करना, एक्शन सीक्वेंस शूट करना, गाड़ियां क्रैश करना। सौभाग्य से शूटिंग के दौरान किसी को कोई चोट नहीं आई। हमारे स्टंट मास्टर और हम सब इस बात का पूरा ख्याल रखते थे कि किसी को कोई चोट न पहुंचे। हां, सुनील ग्रोवर के लिए ये जरूर चैलेंजिंग था क्योंकि उन्होंने इसमें एक्शन सीक्वेंस किए जबकि उनकी कुछ सर्जरी हुई थीं। उन्होंने खुद हमें पुश किया कि चलो करते हैं। क्या फिल्म के हर किरदार की कई लेयर्स हैं?
केवल विक्रांत ही नहीं फिल्म में जितने भी कैरेक्टर हैं सबके पीछे कुछ न कुछ मिस्ट्री तो है। सभी का एक ग्रे शेड है। मैं हमेशा से ये समझाने की कोशिश में रहा हूं कि हर इंसान के सिर्फ दो शेड ब्लैक और व्हाइट नहीं होते हैं, बल्कि ग्रे भी होता है। मैं इसमें यही एक्सप्लोर करने की कोशिश में हूं। मैं इसमें दिखा रहा हूं कि इंसान जब लालच में पड़ जाता है और जब लालच उस पर हावी हो जाता है तो वह बहुत कुछ गलत भी कर जाता है। इसमें सभी की एक बैक स्टोरी है। मौनी का इसमें फुल फ्लेज्ड रोल हैं या सिर्फ उनका कैमियो है?
मौनी का इसमें पूरा रोल हैं और मैं डैम श्योर हूं कि इससे पहले उन्होंने ऐसा कुछ तो नहीं किया है। यह एक्साइटिंग रहा कि वह इस फिल्म से जुड़ीं और उनका रोल भी काफी अहम है। इसे डार्क कॉमेडी जोन में क्यों ले गए, कॉमिक भी रख सकते थे?
मेरे लिए ये फिल्म कॉमेडी ही है। अब मैं कैसे समझाऊं कि एक जोनर को आप एक नए रूप से दिखाने की कोशिश करते हैं तो काफी मेहनत लगती है। मैंने भी इसे थोड़ा फ्रेश नजरिया देने की कोशिश की है। मुझे लगता है कि सोशल मीडिया, ओटीटी और कई तरह की चीजें देखते हुए हमारा माइंड डिस्ट्रैक्ट होता है। मेरा यही मानना है कि ऑडियंस अगर ये फिल्म देख रही है तो सबसे बड़ा दुश्मन है उनका फोन। अगर उन्होंने फिल्म देखते हुए अपना फोन उठाया इसका मतलब है कि कहीं न कहीं, कुछ तो कमजोर है कहानी में। मेरी कोशिश थी इसे ऐसा बनाने की कि दर्शक एक पल के लिए भी कहीं और डिस्ट्रैक्ट न हों। इसका स्क्रीनप्ले इतना फास्ट है कि अगर आपने एक भी सीन मिस कर दिया तो आपको समझ नहीं आएगा कि आगे क्या और क्यों हुआ। अगर फिल्म पसंद की जाती है तो इसे आगे ले जाएंगे क्या। राइटिंग के लेवल पर आपके पास आगे क्या है?
यह तो दर्शक ही तय करेंगे कि आगे लाएं या नहीं। ऐसा तो हमने अभी के लिए प्लान नहीं किया है। पर हमने प्लान किया है कि अगर दर्शकों का अच्छा रिस्पॉन्स आया तो आगे विक्रांत के साथ इसका पार्ट 2 बनाएंगे। ऑफकोर्स हमारे पास स्टोरी तो है। बाकी राइटिंग के लेवल पर मेरे पास और दो फिल्में हैं। जिनकी पिचिंग इस फिल्म की रिलीज के बाद शुरू करूंगा। इनमें से एक थ्रिलर है और दूसरी स्लाइस ऑफ लाइफ ड्रामा है।