नरगिस दत्त एक ऐसा नाम जिन्होंने साबित किया था कि हीरो के बिना भी फिल्म ब्लॉकबस्टर हो सकती है। फिल्म मदर इंडिया में उनके अभिनय की दुनिया भर में तारीफ हुई। उन्होंने अपने करियर के पीक पर सुनील दत्त से शादी की और फिर इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया। शादी के वक्त नरगिस पति सुनील दत्त से ज्यादा सक्सेसफुल हुआ करती थीं। सुनील दत्त जहां 1BHK फ्लैट में रहते थे, वहीं नरगिस साउथ बॉम्बे में लग्जरी जीवन जी रही थीं। हालांकि शादी के बाद वे भी सुनील दत्त के साथ उसी 1BHK फ्लैट में शिफ्ट हो गईं। नरगिस का जीवन चुनौतियों और दर्द से भरा रहा। 6 साल की उम्र में ही उन्होंने चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर फिल्मों में डेब्यू कर लिया। ऐसा नहीं था कि उन्हें आर्टिस्ट बनने का शौक था। मजबूरी में उन्हें इस फील्ड में आना पड़ा। खैर, नियति ने तो उन्हें फिल्मों में धकेल दिया लेकिन एक साधारण आर्टिस्ट से देश की शीर्ष महिला कलाकार बनने का सफर उन्होंने खुद तय किया। लेकिन कहते हैं न कि खुशी किसी के जीवन में ज्यादा दिन नहीं टिकती। सुनील दत्त से शादी करने के बाद तीन बच्चों के साथ नरगिस का जीवन अच्छा-खासा कट ही रहा था कि कैंसर ने उन्हें अपने शिकंजे में ले लिया। जीवन के अंतिम दिन वे बेहद कष्ट में रहीं। बेटे संजय दत्त की पहली फिल्म रॉकी देखने की उनकी प्रबल इच्छा थी, लेकिन रिलीज के तीन पहले ही वे इस दुनिया से चली गईं। आज नरगिस दत्त की 95वीं बर्थ एनिवर्सरी है, इस मौके पर हमने उनकी छोटी बेटी प्रिया दत्त से बात की। प्रिया ने हमसे उनकी मां के बारे में कुछ अनसुने किस्से शेयर किए। 6 साल की उम्र में किया फिल्मों में काम, दसवीं के बाद छोड़नी पड़ी पढ़ाई
नरगिस का जन्म 1 जून, 1929 को कोलकाता में हुआ था। उनका असली नाम फातिमा राशिद था। पिता अब्दुल राशिद रावलपिंडी के नामी खानदान से थे, जो हिंदू से कन्वर्ट होकर मुस्लिम बन गए थे। मां का नाम था जद्दनबाई। वे अपने जमाने की फेमस क्लासिकल सिंगर थीं। मां नरगिस के बचपन की बात करते हुए प्रिया दत्त कहती हैं, ‘मां का बचपन काफी उतार-चढ़ाव से भरा था। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के चलते उन्हें कम उम्र में ही फिल्मों में काम करना पड़ा। उन्हें पढ़ने का शौक था। फिल्मों में जल्दी आने की वजह से उन्हें दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। आगे चलकर इसकी भरपाई उन्होंने किताबों के जरिए की। वे खूब किताबें पढ़ती थीं। किताबें पढ़कर-पढ़कर इतनी इंटेलिजेंट हो गई थीं कि उनसे देश-दुनिया के हर मुद्दे पर बातचीत की जा सकती थी। मैंने मां को हमेशा खाली समय में किताबें पढ़ते देखा था। वे एक दिन में एक किताब पढ़ डालती थीं।’ नरगिस ने सिर्फ 6 साल की उम्र में फिल्म ‘तलाशे हक’ (1935) से फिल्मी दुनिया में कदम रखा था। इस फिल्म में उन्हें बेबी नरगिस के नाम से क्रेडिट दिया गया था। इसके बाद उन्हें 14 साल की उम्र में महबूब खान की फिल्म ‘तकदीर’ में काम करने का मौका मिला। इसमें उनके अपोजिट एक्टर​​​​​​ ​मोतीलाल थे। नरगिस के एक एक्शन से प्रभावित हो गए सुनील दत्त, शादी का मन बना लिया
सुनील दत्त के साथ नरगिस की प्रेम कहानी बहुत ही दिलचस्प है। दोनों ने 1957 में आई फिल्म ‘मदर इंडिया’ में मां-बेटे का रोल किया था। बाद में असल जिंदगी में वे पति-पत्नी बने। कहा जाता है कि ‘मदर इंडिया’ के सेट पर सुनील दत्त ने नरगिस को आग से बचाया था। तभी से दोनों के बीच प्यार हो गया। हकीकत में ऐसा नहीं था। प्रिया ने कहा, ‘पापा ने एक बार मुझसे कहा था कि उस दिन तुम्हारी मां की जगह कोई भी होता तो मैं उसे बचाने जरूर जाता। पापा ने कहा कि उन्हें मां की एक बात काफी इम्प्रेस कर गई थी और वो ये थी कि उन्होंने बिना किसी को बताए उनकी बहन का इलाज करवाया था। पापा ने मुझसे कहा- एक दिन मैं उदास बैठा था। नरगिस मेरे पास आईं और मेरी उदासी का कारण पूछा। मैंने उनसे कहा कि मेरी बहन के पेट में टीबी में है, समझ नहीं आ रहा है कि मुंबई में किस डॉक्टर को दिखाऊं। यह बात सुनते ही वे चुपके से मेरे घर गईं, वहां से मेरी बहन को लेकर डॉक्टर को दिखा आईं। जब मैं घर पहुंचा तो मुझे यह बात पता चली। मेरे दिल में उसी दिन से नरगिस के लिए इज्जत बढ़ गई। मैंने सोचा कि मुझे अपनी जिंदगी में इनसे बेहतर महिला नहीं मिलेगी।’ प्रिया ने कहा कि इस घटना के बाद दोनों करीब आए और 1958 में शादी कर ली। नरगिस के लिए सुनील दत्त ने खरीदा बंगला
नरगिस से शादी के वक्त सुनील दत्त 1BHK फ्लैट में रहते थे। उस फ्लैट में सुनील दत्त के अलावा उनकी मां, बहन और भांजी भी रहा करती थीं। नरगिस उस वक्त तक बहुत बड़ा नाम बन चुकी थीं। सुनील दत्त से शादी के बाद वे भी उसी 1BHK फ्लैट में रहने लगीं। भले ही वे बहुत बड़ी स्टार थीं, लेकिन उन्हें उस एक बेडरूम हॉल वाले घर में रहने को लेकर कोई आपत्ति नहीं थी। प्रिया ने कहा, ‘आप सोचिए कि उस छोटे से घर में ऑलरेडी चार लोग रहते थे, लेकिन मां को कभी दिक्कत नहीं हुई। हालांकि पिता जी को जरूर यह बात खटकती थी। वे जानते थे कि मां कितनी लग्जरी में रहकर आई हैं। यही सोचकर उन्होंने बांद्रा के पाली हिल में एक बंगला खरीद लिया। मां साउथ बॉम्बे की रहने वाली थीं, उस वक्त साउथ बॉम्बे वालों के लिए पाली हिल का इलाका एक गांव की तरह था, लेकिन पापा जितना अफोर्ड कर सकते थे, उन्होंने उतना कर दिया था।’ मां के गुजरने के बाद पता चला कि उनकी शख्सियत क्या थी
प्रिया ने कहा कि वे जब 14 साल की थीं तभी मां नरगिस का निधन हो गया था। उन्होंने मां के साथ बेहद कम समय गुजारा। प्रिया ने कहा, ‘मां नरगिस घर पर बिल्कुल हाउसवाइफ की तरह रहती थीं। खाना बनाने से लेकर तीनों बच्चों के पालन पोषण तक सारी जिम्मेदारी उनके कंधों पर थीं। हमें लगता ही नहीं था कि वे इतनी बड़ी सुपरस्टार हैं। लेकिन उनके गुजरने के बाद पता चला कि उनकी शख्सियत क्या थी।’ सफेद कपड़े पहनना पसंद करती थीं नरगिस, लिपस्टिक के अलावा किसी चीज का शौक नहीं था
प्रिया ने बताया कि उनकी मां नरगिस बहुत बड़ी एक्ट्रेस थीं, बावजूद कभी शो ऑफ नहीं करती थीं। कपड़े भी सिंपल पहनती थीं। अधिकतर व्हाइट ड्रेस ही पहनती थीं, इसलिए उन्हें लेडी इन व्हाइट भी कहा जाता था। जब भी बाहर जातीं तब ईयररिंग पहन लेती थीं। हां, लिपस्टिक एक ऐसी चीज थी, जो वे हमेशा अपने साथ रखती थीं। प्रिया ने कहा कि मां नरगिस ने चाहे फिल्मों हों या असल जिंदगी में, कभी अपने सम्मान के साथ समझौता नहीं किया। बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते थे संजू, बेटे से मिलने हर वक्त दिल्ली पहुंच जाया करती थीं
प्रिया ने बताया कि मां नरगिस बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को लेकर काफी सीरियस रहती थीं। हालांकि जब संजय दत्त का दाखिला दिल्ली के बोर्डिंग स्कूल में हो गया तो वे काफी चिंतित रहने लगीं। आए दिन संजू से मिलने दिल्ली निकल जाया करती थीं। मां संजू भैया को देखे बिना रह नहीं पाती थीं। प्रिया ने कहा कि वे तीनों भाई बहनों में सबसे छोटी हैं। सभी लोग उन्हें मां की चमची बोला करते थे। प्रिया कहती हैं, ‘मैं और मां एक दूसरे की परछाई थे। मैं हमेशा उनके साथ ही रहा करती थी। भैया और दीदी थोड़े बड़े हो गए थे, तो वे लोग खुद से निर्णय ले लेते थे, लेकिन मैं हमेशा मां का ही कहा मानती थी।’ सुनील दत्त ने कभी नहीं कहा कि फिल्में मत करो
कहा जाता है कि सुनील दत्त से शादी के बाद नरगिस ने मजबूरी में इंडस्ट्री छोड़ दी। ऐसा कहा गया कि सुनील दत्त नहीं चाहते थे कि नरगिस अब आगे फिल्मों में काम करें। प्रिया ने इन बातों को खारिज किया है। प्रिया ने कहा, ‘घर पर रहकर परिवार चलाने का फैसला सिर्फ और सिर्फ मां का था। पापा का इसमें कोई टेक नहीं था। शादी के बाद भी उनके पास तमाम ऑफर्स आए, लेकिन उन्होंने फैमिली को ज्यादा तवज्जो दी।’ नरगिस समाज सेवा में भी काफी आगे रहती थीं। 1971 के भारत-पाक युद्ध के समय वे देश के जवानों के लिए कुछ करना चाहती थीं। जब पंडित नेहरू जीवित थे तब नरगिस और सुनील दत्त ने उनसे फेवर मांगा था। पंडित नेहरू ने तब कहा था कि अगर आप लोगों को जवानों के लिए कुछ करना है तो जाइए उन्हें मोटिवेट करिए। 1971 के युद्ध के वक्त वो मौका आ गया। उस वक्त सुनील दत्त, नरगिस सहित कई बड़े सितारों ने जवानों के मनोरंजन के लिए इवेंट ऑर्गेनाइज कराया था। आखिरी दिनों तक बेटे संजय दत्त के लिए कपड़े डिसाइड करती थीं नरगिस
बेटे संजय दत्त की पहली फिल्म रॉकी की रिलीज के तीन दिन पहले ही नरगिस ने दुनिया छोड़ दी। हालांकि संजय से उन्हें इतना लगाव था कि वे ऐसे समय में भी फिल्म का प्रीमियर अटेंड करना चाहती थीं। प्रिया ने बताया, ‘मां बहुत दर्द में थीं। उनके लिए हर दिन निकालना बहुत मुश्किल हो रहा था। इसके बावजूद उन्हें चिंता रहती थी कि संजू भैया कपड़े क्या पहनेंगे। किस दिन कौन सा कपड़ा पहनकर फिल्म की शूटिंग में जाएंगे। लुक कैसा होगा, ये सारी बातें वे जीवन के अंतिम समय में भी ध्यान दे रही थीं।’ नरगिस की साड़ियों और परफ्यूम को संभाल कर रखते थे दत्त साहब
प्रिया ने कहा कि मां के निधन के पिता सुनील दत्त ने उनकी साड़ियां और परफ्यूम्स को संभाल कर रखा था। वे जब तक जीवित थे, उन साड़ियों को निहारते रहते थे। वे मां की यादों को अपने दिलों-दिमाग से खत्म नहीं होने देना चाहते थे। हमारे घर में मां की एक आलमारी है, उसी में उनसे रिलेटेड सारे सामान आज भी रखे गए हैं। कैंसर ने सिर्फ नरगिस को ही नहीं, पूरे दत्त परिवार को भी तोड़ दिया
प्रिया ने कहा कि मां की तबीयत की वजह से उनकी एक साल की पढ़ाई बाधित हो गई थी। पूरा दत्त परिवार नरगिस जी के इलाज के लिए अमेरिका शिफ्ट हो गया था। प्रिया कहती हैं, ‘मैं, संजू और मेरी बहन, अभी बहुत ज्यादा समझदार नहीं हुए थे। पिताजी भी बहुत टूट चुके थे। हम लोग उन्हें भी संभालने में लगे थे। मजबूरी ऐसी थी कि हम लोग खाना बनाना भी सीख गए थे। पिताजी ने तो खाना-पीना सब कुछ छोड़ दिया था। हम सोचते थे कि शायद हम लोग उनके लिए कुछ बनाएं तो वे खा सकते हैं। पिताजी को लगता था कि वे अकेले हम लोगों को कैसे संभालेंगे। उस वक्त तक मां ही थीं, जो घर-द्वार से लेकर बच्चों तक पर सारा ध्यान देती थीं। पिताजी की लाइफ काफी ज्यादा व्यस्त रहती थी। हालांकि समय के साथ पिताजी को एहसास हुआ कि अब अपने बच्चों के लिए मां और बाप दोनों वही हैं। वे फिर से एक्टिव हुए और अपने बच्चों के लिए जीने लगे।’