77वें कांस फिल्म समारोह का समापन 25 मई को हो चुका है। इस बार एक ओर जहां 4 भारतीय फिल्मकारों को पुरस्कार मिले तो दूसरी ओर भारत के वर्ल्ड फेमस सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन को कांस 2024 के प्रतिष्ठित ‘पियरे एंजेन्यूक्स एक्सीलेंस इन सिनेमैटोग्राफी’ सम्मान से नवाजा गया। इसके साथ ही इस्टोनिया की युवा छायाकार कादरी कूप को स्पेशल एनकरेजमेंट अवाॅर्ड प्रदान किया गया। एंजेन्यूक्स ने 2013 में शुरू किया था यह अवॉर्ड
फिल्मों की शूटिंग के लिए कैमरा और कैमरे का आधुनिक लेंस बनाने वाली कंपनी ‘एंजेन्यूक्स’ कांस फिल्म समारोह की ऑफिशियल पार्टनर है। एंजेन्यूक्स कंपनी ने ही सबसे पहले SLR (सिंगल लेंस रिफ्लेक्स) कैमरा और जूम लेंस का आविष्कार किया था। इतना ही नहीं इसी कंपनी के कैमरे ने नासा के रेंजर 7 चंद्रमा मिशन में 31 जुलाई 1964 को पहली बार चंद्रमा की सतह की नजदीकी और क्लोज-अप तस्वीरें भेजी थीं। इस कंपनी ने 2013 में कांस फिल्म समारोह के साथ मिलकर सिनेमैटोग्राफी के क्षेत्र में लाइफ टाइम अचीवमेंट और एनकरेजमेंट अवाॅर्ड शुरू किया था जो अब तक जारी है। संतोष के लिए होस्ट किया गया सेरेमोनियल डिनर
इस बार यह सम्मान भारत के सिनेमैटोग्राफर संतोष सिवन को दिया गया। इस अवसर पर संतोष की मास्टर क्लास और मैजेस्टिक होटल में भव्य सेरेमोनियल डिनर का आयोजन किया गया। इस मौके पर कांस फिल्म समारोह के निर्देशक थेरी फ्रेमों ने कहा कि सिनेमा के लिए भारत एक महान देश है और जमाने के बाद कांस फिल्म समारोह में भारत की शानदार उपस्थिति देखी जा रही है। हालांकि, कांस फिल्म समारोह में शुरुआत से ही भारतीय फिल्में दिखाई जाती रही हैं। फ्रेमों ने संतोष की तारीफ करते हुए कहा कि वे अपनी कला में विलक्षण हैं और उन्होंने सिनेमैटोग्राफी को नई कलात्मक उंचाई दी है। एंजेन्यूक्स कंपनी के प्रमुख इमैनुएल स्प्रोल ने कहा कि संतोष दुनिया के सबसे बड़े सिनेमैटोग्राफर्स में से एक हैं। वे इस समय भारत के सबसे बड़े सिनेमैटोग्राफर हैं। उनका बाॅडी ऑफ वर्क सबसे शानदार है। फ्रेंच अभिनेत्री मिलेनी लारेंट और चीनी-फ्रेंच अभिनेत्री जिंग वांग ने भी संतोष के महत्व को रेखांकित किया। फ्रांस में भारत के राजदूत जावेद अशरफ ने संतोष सिवन की हिंदी फिल्मों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि उनका काम अद्भुत है। उन्होंने बर्लिन में मणिरत्नम की फिल्म ‘दिल से’ के प्रीमियर को याद करते हुए कहा कि शाहरुख खान और प्रीति जिंटा के साथ दर्शकों ने संतोष के खूबसूरत छायांकन को भी खूब पसंद किया था। प्रीति जिंटा बोलीं- संतोष के होने पर आप निश्चिंत हो जाते हैं
इस मौके पर एक्ट्रेस प्रीति जिंटा ने भी फिल्म की शूटिंग के दौरान संतोष के साथ बिताए गए लम्हों को याद किया। उन्होंने कहा कि जब आप संतोष के कैमरे के सामने अभिनय कर रहे होते हैं तो आपकी खुशी बढ़ जाती है। आप निश्चिंत हो जाते हैं क्योंकि आप उन पर भरोसा कर सकते हैं। आप संतुष्टि से भर जाते हैं क्योंकि आपको लगता है कि कुछ चमत्कार होने वाला है। इस अवसर पर भारतीय सिनेमा की जानी-मानी हस्तियों के वीडियो संदेश प्रदर्शित किए गए जिनमें शाहरुख खान, आमिर खान, मोहनलाल, शेखर कपूर, विद्या बालन और मणि रत्नम आदि ने संतोष सिवन के साथ शूटिंग के अनुभव साझा किए। संतोष ने करीब 57 फिल्मों की सिनेमैटोग्राफी की है और 17 से अधिक फिल्मों का निर्देशन किया है। इन दिनों वे आमिर खान और राजकुमार संतोषी की फिल्म ‘लाहौर 1947’ और रितेश देशमुख की फिल्म ‘राजा शिवाजी’ की शूटिंग पर जुटे हुए हैं। इसके साथ ही वो अपनी फिल्म ‘जूनी’ की भी शूटिंग में व्यस्त हैं। संतोष बोले- मैं एक खराब पति रहा हूं
खुद संतोष ने इस अवसर पर अपने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सिनेमैटोग्राफी एक ऐसी कला है जिसमें भाषा और देशों की कोई दीवार बाधा नहीं बनती। जितनी आसानी से मैं तमिल और मलयालम सिनेमा में काम करता हूं उतनी ही सुविधा से हिंदी सिनेमा, हाॅलीवुड और विश्व सिनेमा में काम करता हूं। उन्होंने बताया कि एक बार उन्हें जापान के सिनेमैटोग्राफर एसोसिएशन ने आमंत्रित किया और वो उन लोगों के साथ 50 दिन रहे। उन्होंने देखा कि वो उनकी फिल्म ‘दिल से’ का फेमस गाना ‘छैंया छैंया’ गा रहे थे। सिवन ने कहा कि सिनेमैटोग्राफी एक वैश्विक कला है इसलिए यह यूनिवर्सल है। उन्होंने कहा कि मैं हमेशा एक खराब पति रहा हूं जिसने काम के चक्कर में अपनी पत्नी और बेटे को अक्सर अकेला छोड़ दिया। आज वे यहां हैं और शायद उन्हें खुशी हो रही होगी। उन्होंने अपने माता-पिता और दादी को याद किया जिनसे उन्होंने केरल की समृद्ध संस्कृति को सीखा। कांस सिर्फ एक्टर-डायरेक्टर को ही नहीं तकनीशियंस का भी सम्मान करता है: संतोष
संतोष ने एक खास बातचीत में कहा कि जिस पैशन, कमिटमेंट और स्टाइल के साथ कांस फिल्म समारोह आयोजित किया जाता है उससे हम भारतीय लोगों को सीखना चाहिए। ये लोग केवल एक्टर और डायरेक्टर को ही नहीं तकनीशियन को भी इज्जत और सम्मान देते हैं। सिनेमा को बनाने में तकनीशियंस की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उनके बिना आप फिल्में नहीं बना सकते। वहीं अपनी लंबी सिनेमाई यात्रा के बारे में संतोष ने कहा कि यह अमेजिंग रही। मैं इसलिए सिनेमैटोग्राफर बना क्योंकि मुझे यात्राएं करनी थीं और दुनिया को देखना था। आप देखिए कि एक जीवन तो केवल हिंदुस्तान को भी शूट करने के लिए काफी नहीं है। मैं अभी तक भारत में ही कई ऐसी जगहों पर शूटिंग नहीं कर पाया जहां मैं सालों से शूट करना चाहता हूं। मुझे 10 साल पहले जब अमेरिकन सिनेमैटोग्राफिक सोसायटी की सदस्यता मिली तो मैं आसानी से हाॅलीवुड में बस सकता था। लेकिन मैंने भारत में रहना पसंद किया क्योंकि मैं यहां जो सिनेमा सोच सकता हूं वह वहां नहीं हो सकता। भारत में ही जब करने को इतना सारा काम है कि कहीं बाहर जाने की जरूरत ही क्या है? हालांकि, मुझे दुनिया में कहीं भी काम करने का अवसर मिलता है तो मैं काम करता हूं और वापस अपने देश भारत आ जाता हूं। सिनेमा से लंबा ब्रेक लेकर खेती-बाड़ी करूंगा
उन्होंने कहा कि किसानों पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाते हुए मैंने महसूस किया कि दुनिया में सबसे अच्छा काम खेती-बाड़ी है। यदि मैं सिनेमैटोग्राफर नहीं होता तो किसान होता। मैंने सोचा कि मेरा बेटा शहरी प्रदूषण से दूर प्राकृतिक माहौल में पले तो मैंने पुदुचेरी में जमीन खरीदी और एक घर बनाया। उसे भी यह सब अच्छा लगता है। मैं सिनेमा से ब्रेक लेकर खेती-बाड़ी करूंगा। मैं दोनों काम एक साथ नहीं कर सकता। अभी मेरी जितनी शूटिंग बाकी है वह सब पूरी करके मैं सिनेमा से लंबा ब्रेक लूंगा और खेती-बाड़ी करूंगा। बॉलीवुड भी साउथ का फॉर्मूला अपना रही है यह पूछे जाने पर कि जब हम भारतीय सिनेमा के बारे में सोचते हैं तो केवल मुंबईया सिनेमा ही ध्यान में आता है जो सच नहीं है। बंगाल, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु का सिनेमा भी बहुत बड़ा है तो हम एक भारतीय सिनेमा किसे कहेंगे? संतोष ने कहा- अब हालात बदल रहे हैं। ऐसा धीरे-धीरे होने लगा है।अब हम एक नया शब्द प्रयोग में लाने लगे हैं – पैन इंडियन फिल्म। हाल के वर्षों में दक्षिण भारतीय फिल्में उत्तर भारत खासकर बाॅलीवुड में बहुत लोकप्रिय हुईं। बाॅलीवुड ने भी दक्षिण का फॉर्मूला अपनाना शुरू किया है। वहीं बिग हीरो, सुपर हीरो, लार्जर दैन लाइफ और ओटीटी के कारण आपको थिएटर के लिए बहुत बड़ा करना पड़ रहा है और दिखाना पड़ रहा है। इसलिए अब बाॅलीवुड भी बदल रहा है। कलाकारों और निर्देशकों की आवाज जाही हो रही है। पर मेरा मानना है कि अंततः दोनों एक नहीं हो सकते। मसलन मलयाली सिनेमा का खास चरित्र है। उन्हें अपना हाऊस प्लान चाहिए ही चाहिए। संदीप रेड्डी वांगा और एटली जैसे दक्षिण के फिल्म निर्देशकों द्वारा बाॅलीवुड फिल्में बनाने के ट्रेंड पर उन्होंने कहा कि यह तात्कालिक प्रवृत्ति है। आप याद कीजिए कि राज कपूर और करण जौहर ने भी ऐसे प्रयोग किए थे। पर क्या हुआ? ये कभी एक नहीं हो सकते। भारत में हर तरह के सिनेमा का चरित्र बना रहेगा क्योंकि यह संस्कृति से जुड़ा हुआ है। लेखक: अजीत रॉय (वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक)