नीतीश कुमार सच में इंडी गठबंधन से बेहद खफा हैं! नाराजगी तो उन्हें अपनी सरकार के बड़े और विश्वसनीय सहयोगी आरजेडी के प्रति भी है। आरजेडी से उनकी नाराजगी का आलम यह है कि उसके किसी नेता से नीतीश का वार्तालाप बंद है। बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के जन्मदिन पर नीतीश ने शुभकामनाएं देने से भी परहेज किया। पिछले साल से राबड़ी आवास में मौके-बेमौके उनकी जिस तरह आवाजाही रही है, वह भी कुछ दिनों से बंद है। खासकर इंडी अलायंस की चौथी बैठक के बाद। इसके बाद से नीतीश की NDA की ओर झुकाव और लालू यादव से दुरी चर्चा पर हैं

RJD से नाराज़ होते का कारण

दिल्ली में इंडी अलायंस की हुई बैठक के बाद से ही नीतीश और आरजेडी के नेताओं के बीच फासला बढ़ता दिख रहा है। इसकी दो वजहें बताई जा रही हैं। पहला यह कि जिस लालू प्रसाद ने उन्हें पीएम पद और राष्ट्रीय राजनीति का सपना दिखाया, उन्होंने मल्लिकार्जुन खरगे का नाम पीएम पद के लिए प्रस्तावित होने पर कोई प्रतिवाद नहीं किया। यह तो भला हो शरद पवार का, जिन्होंने बैठक के दो दिन बाद कहा कि पीएम का मुद्दा चुनाव बाद के लिए टाल देना चाहिए। पर, आरजेडी कैंप ने इस बारे में कुछ नहीं कहा। लालू प्रसाद यादव की खामोशी से रहस्य और गहरा हो गया।

नीतिश कुमार को मनाने का कौशल

नीतीश कुमार को संयोजक बनाने की चर्चा एक बार फिर छिड़ गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक नीतीश को संयोजक बनाया जाएगा और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे विपक्षी गठबंधन के भी अध्यक्ष होंगे। यानी नीतीश को झुनझुना थमाने की तैयारी है। नीतीश इतने नासमझ नहीं हैं। वे भी इस बात को समझते हैं कि कांग्रेस ने 291 सीटों पर लड़ने का निर्णय लिया है। सिर्फ नौ राज्यों में गठबंधन के तहत कांग्रेस लड़ेगी। ऐसे नौ राज्यों में बिहार, झारखंड, बंगाल, दिल्ली, पंजाब जैसे राज्य हैं। क्या नीतीश को यह अनुमान नहीं होगा कि पश्चिम बंगाल में ममता जब कांग्रेस को दो-तीन सीटों पर निपटाना चाहती हैं या दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी कांग्रेस के टोकन प्रतिनिधित्व की बात कर रही है तो ऐसे में वे बतौर संयोजक इंडी अलायंस के घटक दलों का लफड़ा कैसे सुलझा पाएंगे। इसलिए वे संयोजक का पद अब स्वीकार भी करेंगे कि नहीं, इस पर संदेह है।

RJD पर JDU को तोड़ने का आरोप

इस बीच जिस तरह आरजेडी पर जेडीयू को तोड़ने की चर्चा छिड़ी और इसमें जेडीयू के ही राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह का नाम उछला, उससे आरजेडी से उनकी दूरी बढ़ गई है। नीतीश ने पहला काम यह किया कि ललन सिंह को हटा कर पार्टी की कमान अपने हाथ में ले ली। अब उन्हें पार्टी के बारे में किसी तरह का निर्णय लेने में कोई वैधानिक अड़चन भी नहीं आएगी। ललन सिंह को हटाते ही आरजेडी में सन्नाटा पसर गया है। सन्नाटा तो बिहार की महागठबंधन सरकार में शामिल दूसरे घटक दलों में भी है। कोई कुछ बोल नहीं रहा। इंडी अलायंस में सब कुछ ठीक रहने की रट लगाए रहने वाले जेडीयू के नेता भी अब खामोश हैं।

क्या नीतीश BJP के साथ जाने को तैयार हैं?

नीतीश ने जब से ललन सिंह को अध्यक्ष पद से चलता किया है, तब से ही कयास लग रहे हैं कि नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदल सकते हैं। पाला बदल की उम्मीद का सबसे बड़ा संकेत यह मिल रहा है कि आरजेडी से उनकी दूरी भी बढ़ रही है। लालू यादव और तेजस्वी यादव की चुप्पी से भी इसे बल मिल रहा है। नीतीश कुमार खुद कह चुके हैं कि विपक्ष को उन्होंने जाति सर्वेक्षण और आरक्षण का सबसे बड़ा मुद्दा दे दिया, इसके बावजूद इंडी अलायंस की बैठक में इस पर चर्चा तक नहीं हुई। यानी उन्हें किसी ने इसका क्रेडिट देने की जरूरत ही नहीं समझी। ऐसे में नहीं लगता कि इंडी अलायंस में वे संयोजक का पद अब स्वीकार करेंगे। हां, यह हो सकता है कि अगर उन्हें पीएम फेस बनाने की इंडी अलायंस घोषणा कर दे तो वे शायद मान जाएं। हालांकि वे अपने को पीएम पद की दावेदारी से बाहर बताते रहे हैं। पर, अब दावेदारी नहीं, बल्कि घोषणा की बात है। अलायंस घोषणा कर दे तो शायद वे तैयार हो जाएं। जेडीयू के कार्यकर्ता अब भी यह सपना पाले हुए हैं कि नीतीश पीएम पद के सर्वथा योग्य हैं। अध्यक्ष बन कर जब नीतीश पटना लौटे तो जेडीयू कार्यकर्ता यही नारा लगा रहे थे- हमारा पीएम कैसा हो, नीतीश कुमार जैसा हो।

और पडे : कीस -किसको झटका

बिहार बीजेपी के नेताओं के सुर नीतीश के प्रति नरम पड़ गए हैं। यह बदलाव तब से हैं, जब से नीतीश ने अध्यक्ष पद संभाला है। उधर जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सलाहकार केसी त्यागी का इशारा भी गौर करने लायक है, जिसमें उन्होंने कहा था कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता। दरअसल उन्होंने यह बात तब कही थी, जब पत्रकारों ने पूछा कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का न्योता मिला तो क्या वे जाएंगे? इस पर त्यागी ने कहा था कि भाजपाई मित्र बुलाएंगे तो जरूर जाएंगे।